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शनिवार, जुलाई 13, 2019

अनोखा आशीर्वाद

वर्तमान समय में किसी नगर में एक संन्यासी आ गए। पीपल के पेड़ के नीचे बैठ कर जब वे ध्यान-मग्न होते तो घंटों उसी अवस्था में रहते। आते-जाते लोग उन्हें ध्यान में लीन देखकर श्रद्धा की भावना से प्रणाम करने लगे तथा कुछ तो उनके लिए फल, मिठाई पानी, रोटी-सब्जी आदि रख देते। संन्यासी जब ध्यान से बाहर आते तो आस-पास खाने की चीजों को देखकर ईश्वर का धन्यवाद करते और भूख अनुसार खाते तथा बाकी का सारा खाना बच्चों को बांट देते। जो भी उनकी इस दिनचर्या को देखता हैरान रह जाता। 

बातों-बातों में संन्यासी की प्रसिद्धि बढ़ने लगी। कोई कहता कि बहुत बड़े महात्मा हैं, दिन में सिर्फ एक बार जरूरत भर का खाना खाते हैं, बाकी सब बच्चों को दे देते हैं या पशु-पक्षियों को खिला देते हैं। कोई अपने घर जाकर बताता कि एक पहुंचे हुए संन्यासी हैं जो पूरे दिन ध्यान में लीन रहते हैं, चेहरे में दिव्य चमक है। मंदिरों में भी संन्यासी की चर्चा होने लगी तथा सभी में ये मान्यता बढ़ने लगी कि संन्यासी कोई अवतार पुरुष हैं। पास ही की बस्ती से श्यामू नाम का एक गरीब और बेरोजगार व्यक्ति भी संन्यासी से प्रभावित होकर उनकी सेवा में लग गया। संन्यासी जब भी पास की बस्ती के सुलभ शौचालय में नहाने आदि के लिए जाता तो पीछे से श्यामू पीपल के आस-पास की पूरी सफाई कर देता।

महीने भर में संन्यासी की प्रसिद्धि बहुत बढ़ गई। पहले जो लोग ध्यान-मग्न संन्यासी को प्रणाम करते थे या खाने-पीने की वस्तुएं रखते थे, वे लोग अब आशीर्वाद की इच्छा रखने लगे। संन्यासी के ध्यान में नहीं होने पर वे लोग उनके पास जाकर खाने-पीने की वस्तुएं, कपड़े, पैसे आदि का भेंट देकर प्रणाम की मुद्रा में खड़े हो कर कहते कि "स्वामी जी आशीर्वाद दो "। परन्तु ये क्या ! संन्यासी हर किसी को "सही समय पर मृत्यु को प्राप्त करो" का आशीर्वाद देता। कुछ तो सदमे में आकर चुपचाप चले जाते तो कुछ अपशब्द कहते, मगर दी हुई भेंट को कोई भी वापस लेने की हिम्मत नहीं कर पाता, इस भय से कि कहीं ऐसा आशीर्वाद देने वाला कोई श्राप ही न दे दे। 

धीरे-धीरे संन्यासी की बदनामी होने लगी। लोग अब उन्हें ढोंगी-पाखण्डी बताने लगे, कोई कहता कि यह पक्का कोई तांत्रिक है वर्ना मरने का आशीर्वाद भला कौन देता है। कोई तो संन्यासी को पागल बताता मगर किसी ने भी उनसे ये पूछने की हिम्मत नहीं की कि उन्होंने लोगों को मरने का आशीर्वाद क्यों दिया? अब संन्यासी को न कोई प्रणाम करता और न ही कुछ अर्पण करता। सिर्फ श्यामू का ही संन्यासी पर से विश्वास न टूटा था। उसे लगता कि संन्यासी लोगों के पाप के कारण उन्हें इस प्रकार का अनोखा आशीर्वाद दे रहे हैं।  श्यामू कभी घर से खाना लाकर संन्यासी को खिलाता तो कभी मंदिर से प्रसाद आदि ले आता। संन्यासी हर हाल में संतुष्ट रहता, और कभी कुछ न कहता। 

एक दिन साथ की बस्ती से एक व्यक्ति अपने बीमार बेटे को उस संन्यासी के पास लाया। वह व्यक्ति श्यामू के पड़ोस में रहता था और श्यामू की बातें सुनकर उसे भी यह विश्वास हो गया था कि संन्यासी बहुत बड़े तपस्वी हैं। उसके बेटे के बचने की कोई संभावना नहीं थी, डॉक्टरों ने भी हाथ खड़े कर दिए थे। मगर संन्यासी ने उस बच्चे को भी "सही समय पर मृत्यु को प्राप्त करो" का आशीर्वाद दिया। उस व्यक्ति को बड़ा सदमा लगा। उसने संन्यासी से कहा की वह कोई साधु नहीं बल्कि राक्षस है जो एक मरते हुए बच्चे को जीवित रहने के बजाए मरने का आशीर्वाद दे रहा है। वह व्यक्ति रोता हुआ अपने घर गया और सभी को सारा हाल बताया। घर में बस्ती के और लोग भी थे जो सारी बात सुनकर गुस्सा हो गए। उन्होंने कहा कि ऐसे ढोंगी को यहां रहने नहीं देना चाहिए। उन्होंने जाकर संन्यासी को धमकाया कि वह उस जगह से चला जाए नहीं तो वे लोग उसे मार-मार कर नगर से बाहर निकाल देंगे। 

श्यामू को रास्ते में बस्ती के लोगों से सारी बात पता चली। उसे भी बहुत दुःख हुआ और संन्यासी पर बहुत गुस्सा हुआ। उसने संन्यासी से कहा कि जब लोगों को तुमने मरने का आशीर्वाद दिया था तब भी मैंने तुम पर विश्वास नहीं छोड़ा मगर एक मरते हुए बच्चे से तुम्हारी क्या दुश्मनी थी जो तुमने उसे भी ऐसा आशीर्वाद दिया।  बताओ तुमने ऐसा क्यों किया?

संन्यासी बोला कि "इस संसार में लोग अपनी पूरी जिंदगी भौतिक सुखों के लिए मेहनत करते रहते हैं। यहां तक की मरते वक्त भी उनके मन में शांति नहीं होती तथा तब भी यही दुःख सताता है कि बहुत कुछ करना रह गया। घर लेना था, बच्चों की शादी करनी थी, कारोबार को और बढ़ाना था आदि आदि। मगर कोई भी यह नहीं सोच पाता कि अगर काल ने आना ही है तो ईश्वर पर विश्वास रखकर शांति से मृत्यु को प्राप्त करे। इसके अलावा हर साल डॉक्टरों द्वारा इलाज में लापरवाही, गरीबी, नशे की लत, हत्या, संगठित अपराध, भ्रष्टाचार, दुर्घटना आदि के कारण अनगिनत लोगों की असमय मृत्यु हो जाती है।" 

संन्यासी आगे बोला कि "जीवन और मृत्यु तो ईश्वर के हाथों में है। मेरे आशीर्वाद देने से न तो किसी का एक दिन ज्यादा और न ही एक दिन कम हो सकता है। इसीलिए जब में किसी को सही समय पर मृत्यु को प्राप्त करने का आशीर्वाद देता हूं तो मन में यही भावना होती है कि वह व्यक्ति सही समय पर अर्थात ईश्वर द्वारा दिया गया अपना पूरा जीवन जी कर मृत्यु को प्राप्त करे। साथ ही वह ऐसे समय पर मृत्यु को प्राप्त करे जब उसने अपने सभी सांसारिक दायित्व और कर्त्तव्यों
 को पूरा कर लिया हो।"

अब श्यामू को संन्यासी के आशीर्वाद का मतलब समझ आ गया था। उसने संन्यासी पर क्रोधित होने के लिए उनसे क्षमा मांगी तथा अपनी बस्ती जाकर उसने अपने पड़ोसी को सारी बात बताई।  उसके पड़ोसी को भी संन्यासी के अनोखे आशीर्वाद का मतलब समझ आ गया था। उसने सोचा कि वह सुबह होने पर अपने बेटे को दोबारा संन्यासी के पास ले जाएगा। 

सुबह होने पर उसका बेटा ठीक हो चुका था। संन्यासी भी वहां से कहीं और जा चुका था।   

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