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रविवार, जनवरी 12, 2020

इंसानी शरीर हैकिंग : मानवता के लिए खतरा

नोट : इस लेख को सिर्फ व्यस्क ही पढ़ें। इस लेख में मैंने कुछ ऐसे शब्दों व विषयों पर चर्चा की है, जिन पर साधारणतः मैं कभी भी, कुछ भी लिखना नहीं चाहूंगा।  मगर इस लेख का विषय बहुत गंभीर है, जिस कारण मुझे मजबूरन कुछ विषयों पर लिखना पड़ा है। उम्मीद है कि पाठकगण लेख को पढ़कर विषय की गंभीरता को समझेंगे।

डिस्क्लेमर : प्रस्तुत लेख "इंसानी शरीर की हैकिंग : मानवता के लिए खतरा" सिर्फ और सिर्फ विचार-विमर्श के मकसद से लिखा जा रहा है। इस लेख को लिखने के लिए अनुमानों का सहारा भी लिया जा रहा है जिस कारण से इस लेख में बहुत से तथ्य भ्रामक हो सकते हैं तथा पाठकों को बहुत सी बातें काल्पनिक या साइंस फिक्शन लग सकती हैं। इसलिए आपसे निवेदन है कि आप इस लेख को सिर्फ और सिर्फ आलोचक की दृष्टि से पढ़ें। साथ ही निवेदन यह भी है कि लेख को पूरा पढ़ें। 

ऐसा कहा जाता है कि 84 लाख योनियों में भटकने के बाद बड़े भाग्य से इंसान जन्म प्राप्त होता है। साथ ही, यह भी कहा जाता है कि इंसान सभी जीवों से श्रेष्ठ है। मगर ये भी सच है कि रंग, जाति, धर्म आदि के नाम पर इंसान ही इंसान का शोषण करता है। सिर्फ इंसानों की मूर्खता के कारण प्रकृति और पर्यावरण में बदलाव आ रहे हैं अथवा वे नष्ट हो रहे हैं। पशु-पक्षियों की बहुत सी प्रजातियां या तो लुप्त हो चुकी हैं या लुप्त होने के कगार पर है। इतना ही नहीं, हर साल खरबों रुपए हथियारों पर खर्च किए जाते हैं तथा पूरी दुनिया को खतरे में डाल कर परमाणु बमों के जखीरे पर गर्व किया जाता है।

ऐसे में अगर मस्तिष्क और शरीर को हैक करने की शक्ति इंसान के हाथ में आ जाए तो वह सिर्फ तबाही मचाएगा। दुनिया में कोई भी सुरक्षित नहीं रहेगा। कुछ ताकतें तो भगवान बनने की चाह में शैतान बन जाएंगी और पूरी मानव जाति को इसका परिणाम भुगतना पड़ेगा। 

परन्तु क्या सचमुच इंसानी शरीर की हैकिंग हो सकती है? मानव जाति पर कौन सा खतरा मंडरा रहा है? क्या इस समस्या का कोई समाधान है? चलिए, इस लेख के द्वारा इन्हीं सवालों का जवाब ढूंढ़ने की कोशिश करते हैं :-

1. मस्तिष्क की हैकिंग (Mind Hacking) :- अगर आपने इस ब्लॉग के विज्ञान लेबल वाले पिछले सभी लेखों को पढ़ा है तो आपको पता ही होगा कि विज्ञान ने मस्तिष्क के विचारों को पढ़ना, मस्तिष्क में विचार या शब्द डालना तथा सपनों को कण्ट्रोल करना आदि संभव कर दिया है। वैज्ञानिकों ने तारों से मस्तिष्क को जोड़कर (मेरे विचार से बिना तारों के भी), इलेक्ट्रोड के इस्तेमाल, न्यूरल इम्प्लांट्स, पराश्रव्य आदि की मदद से न सिर्फ विचारों को देखने, सुनने व पढ़ने का तरीका निकाल लिया है बल्कि उन्हें प्रभावित करने तथा उनमें बदलाव लाने का रास्ता भी खोल दिया है। इन तथ्यों से कुछ हद तक ये सिद्ध हो जाता है कि मानव शरीर की हैकिंग संभव है।

मस्तिष्क की हैकिंग से निम्नलिखित लक्षण व समस्याएं उत्पन्न होती हैं :- उलटी आना, चक्कर आना, एकदम से शरीर के आगे अँधेरा छाना, शरीर का संतुलन खोना, सिर सुन्न होना, एकदम से मुंह में शब्द आना, गुस्सा आना या निराशा आना, नींद ज्यादा आना, बेहोशी जैसी नींद आना, कई बार ऐसा महसूस होना जैसे सिर पर कोई नियंत्रण ही नहीं है, मति भ्रम (Hallucination) होना, सपनों में फिल्म जैसा चलना तथा ज्यादातर ख़राब या नकारात्मक सपने आना, बातों को भूलना, एकाग्रता खराब होना आदि।

2. शॉक वेव्स (Shock Waves):- टारगेटेड इंडिविजुअल्स बहुत बार अपनी समस्याओं में "Electronic Rape" शब्द का भी उल्लेख करते हैं। इस शब्द पर ज्यादा कुछ लिखने के बजाए लिंक्स देना उचित है, जिन्हें आप स्वयं पढ़ सकते हैं। मुझे ऐसा लगता है कि लिंक्स में बताए गए शॉक वेव तथा बिजली के झटकों का सीधा या परोक्ष रूप से उपरोक्त शब्द से संबंध है तथा शॉक वेव्स के साथ डोप्पलर इफेक्ट का भी दुरुपयोग हो रहा है। गैंग स्टाल्कर्स के बारे में सर्च करते वक्त मुझे (बदकिस्मती से) इस विषय से जुड़े लेख व समाचार मिले थे।  क्या शॉक वेव ध्वनि तरंगों का कोई रूप है? इसके बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं मिली तथा इसका जवाब कोई विशेषज्ञ ही दे सकता है।

इस विषय के बारे में ज्यादा जानकारी के लिए निम्नलिखित लिंक्स क्लिक करें :-
1. Penile Low-Intensity Shock Wave Therapy: A Promising Novel Modality for Erectile Dysfunction
2. Why ‘Shockwave’ Therapy for ED Isn’t Ready for Prime Time
3. A meta-analysis of extracorporeal shock wave therapy for Peyronie’s disease
4. Shock wave therapy hope for people with ED
5. Scientists promote 'shocking' way to beat erectile dysfunction
6. Zapping man's private parts with electric current could cure erectile dysfunction

3. कंपन :- कम्पन (Vibrations) को शरीर के लिए बहुत हानिकारक माना जाता है। फैक्टरियों में जो कर्मचारी अपने हाथों से कम्पन वाली मशीनों इस्तेमाल करते हैं, उन्हें आगे चलकर कंपन के कारण हाथ व बाजू कांपने, सुन्न होने तथा कुछ महसूस न होने जैसी समस्याओं का खतरा रहता है। इसके अलावा लम्बे समय तक पूरे शरीर में कंपन वाली मशीनों या गाड़ियों के इस्तेमाल से पीठ व खास तौर से कमर में दर्द की समस्या हो जाती है, उदहारण के लिए जैसे कई बार बस में सफर करने के बाद पीठ दर्द हो जाता है।

इस अवांछित कंपन को भी गैंग स्टाल्कर्स ने हथियारों के रूप में इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। कंपन उत्पन्न करने के लिए मैकेनिकल अथवा इलेक्ट्रो-मैकेनिकल आसिलेटर (Mechanical or Electro-Mechanical Oscillators) का प्रयोग किया जाता है। ऐसा लगता है कि गैंग स्टाल्कर्स इस उपकरण को टारगेट के घर के नीचे स्थापित करते हैं। इसके लिए घरों के साथ बनाए गए बरसाती नाले अथवा सीवर का इस्तेमाल किया जाता है। जब इस आसिलेटर को चलाया जाता है तो सिर्फ टारगेट के घर के फर्श और दीवारों आदि में बारीक कंपन महसूस होती है।

आसिलेटर की फ्रीक्वेंसी सेट करने पर वह एक ही गति से चलता रहता है जिस कारण घर के बिस्तर, फर्नीचर आदि हर चीज कंपन के गिरफ्त में आ जाते हैं तथा उनमें भी कंपन होने लगता है। ऐसे में टारगेट कहीं पर भी लेटे या बैठे, वह इस कंपन से बच नहीं सकता है। जब भी आसिलेटर चलता है तो सूक्षम गड़गड़ाहट की सी आवाज आती है तथा कानों में दबाव महसूस होता है। मगर इस तरह की आवाज को सुनना अथवा दबाव महसूस करना व्यक्ति विशेष के ऊपर निर्भर करता है तथा जरुरी नहीं है कि घर के हर सदस्य को ये आवाज सुनाई दे।

इस तरह के कंपन का विरोध करना बहुत मुश्किल हो जाता है क्योंकि ये आवाज चहुं दिशाओं (Surround Sound, Omnipresent) से महसूस होती है जिससे इसका स्रोत खोजना मुश्किल होता है। इस आसिलेटर के पॉवर पर निर्भर करता है कि ये कितने क्षेत्र पर अधिक तीव्र चलेगा जिससे एक कमरे में अधिक तीव्रता से कंपन महसूस होती है जब कि दूसरे कमरे में न के बराबर। इस उपकरण की फ्रीक्वेंसी और तीव्रता पर इसका प्रभाव निर्भर करता है। इसके अलावा कई बार ध्वनि तरंगों (अनुदैर्ध्य तरंग व अनुप्रस्थ तरंग) से भी कंपन जैसी स्थिति उत्पन्न करके टारगेट को निशाना बनाया जाता है।

आसिलेटर से उत्पन्न लक्षण व समस्याएं :- शुरुआत में इस आसिलेटर से उत्पन्न कंपन से सोते वक्त तेज गर्मी व पसीने आते हैं। इसका कारण यह है कि कंपन के कारण शरीर की वसा (Fats) तेजी से जलती है, ठीक उसी प्रकार से जैसे वाइब्रेटिंग बेल्ट (Vibrating Belts) काम करता है। सर्दियों में कम्बल ओढ़ने के कारण कम्पन की गति और तेज हो जाती है। ऐसे में महीने भर में 10-15 किलो तक वजन घटना मामूली बात है। धीरे-धीरे जब शरीर में वसा की कमी होने लगती है तब आसिलेटर से उत्पन्न कंपन से ठण्ड से कंपकंपी भी छूटने लगती है। कुछ भी खाओ शरीर को नहीं लगता है। शरीर सूख के कांटा हो जाता है।

कंपन से बदहजमी, हिचकी लगना, पेट खराब होना, अत्याधिक कब्ज होना, नाक में सूजन आना या कुछ लोगों की नाक से खून निकलना, सो कर उठने पर जलने की सी बदबू आना, सांस लेने में दिक्कत, दिल की धड़कन बहुत तेज हो जाती है (जो कि आसिलेटर से उत्पन्न कम्पन की गति पर निर्भर करता है), मुंह में कड़वाहट, शरीर में ऊर्जा अथवा बिजली के दौड़ने का सा एहसास होना आदि लक्षण प्रमुख हैं।

4. सोनिक पल्स (Sonic Pulse) :- सोनिक हथियार वे हथियार हैं जिनका उपयोग टारगेट को चोट पहुंचने, पंगु बनाने अथवा मारने के कार्य में होता है। सोनिक हथियार के कुछ रूप हैं - सोनिक गोली, सोनिक ग्रेनेड, सोनिक तोप (Canon) तथा सोनिक माइन (Mine)। मगर यहां सिर्फ सोनिक पल्स या स्पन्द के बारे में बात हो रही है जो कि शायद सोनिक गोली की परिभाषा में आती है। गैंग स्टाल्कर्स इस ऊर्जा गोली से टारगेटेड इंडिविजुअल्स के शरीर को निशाना बनाते हैं, कुछ वैसे ही जैसे कि बंदूक से गोली मारी जाती है मगर इससे उत्पन्न परिणाम बंदूक की गोली से बिलकुल अलग होता है।

ये पल्स असल में ध्वनिक ऊर्जा होती है जो कि दिखाई नहीं देती है। इस पल्स को टारगेट के शरीर के किसी भी हिस्से में मारा जा सकता है जिससे तीव्रता के अनुसार उनके शरीर में सुई की सी चुभन से लेकर तेज दर्द (जो कि कुछ घंटे से लेकर कई दिन तक रह सकता है) जैसे असर उत्पन्न किए जा सकते हैं। इसके अलावा इस पल्स को एक के बाद एक सृंखला (Series) में भी निशाना मारा जा सकता है जिससे  शरीर में बारीक झटके (कुछ कुछ वैसे ही जैसे कि आंखें फड़फड़ाती है या कई बार कुदरती हाथ या पांव में झटके लगते हैं) भी उत्पन्न किए जा सकते हैं।

इस विषय में थोड़ी जानकारी के लिए निम्नलिखित लिंक्स को क्लिक करें :-
1. Sonic weapon
2. "Sound Bullets" to Zap Off Tumors?

पल्स से उत्पन्न लक्षण व समस्याएं :- इस पल्स का इस्तेमाल टारगेट को परेशान (Disturbed) और आतंकित करने के लिए होता है। पल्स अदृश्य होने की वजह से पता ही नहीं लगता कि ये किस दिशा से चलाई जा गई है जिससे नकारात्मकता, डर और असहाय होने का एहसास होता है। इस पल्स से ब्रेन वाश करने की कोशिश की जाती है तथा हर नकारात्मक बात पर (जैसे कि फिल्म के नकारात्मक दृश्य पर) टारगेट को अलग-अलग  तरह के पल्स मारे जाते हैं जिससे टारगेट का मस्तिष्क धीरे-धीरे सिर्फ नकारात्मकता को देखने का आदि हो जाता है।

 इस तरह की पल्स या ऊर्जा गोली का एक खास प्रयोग भी होता है। इस ध्वनि पल्स को पुरुषों के गुप्त स्थान पर मारा जाता है जिससे उन्हें कृत्रिम नपुंसकता जैसी समस्या होती है। इस कृत्रिम स्थिति (कृत्रिम या स्थाई करना गैंग स्टाल्कर्स की मर्जी पर निर्भर करता है) को बरकरार रखने के लिए टारगेट के गुप्त अंग को लगातार निश्चित समय अंतराल पर निशाना बनाया जाता है। ऐसी स्थिति में टारगेट गहरे डिप्रेशन से ग्रस्त हो सकता है तथा बहुत बार ब्लैकमेल भी किए जाते हैं।
  
5. हम्म साउंड (Hum Sound):- इस ब्लॉग के लेख "ध्वनि : उपयोग और दुरूपयोग (5) Part-2" में मैंने आपको हम्म साउंड के बारे में बताया था। इस ध्वनि को भी सुन पाना व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है। हम्म साउंड को बिजली के ट्रांसफार्मर से निकलने वाली आवाज होती है जिसे मैन्स हम्म (Mains Humm) भी कहा जाता है।

लक्षण व समस्याएं :- इससे सरदर्द, बेचैनी, उलटी आना, एकाग्रता न हो पाना, नींद न आना आदि समस्याएं उत्पन्न होती हैं। इस हम्म साउंड का उपयोग शायद मस्तिष्क के विचारों को पढ़ने के लिए भी होता है। इसके पीछे तर्क सिर्फ इतना है कि ध्वनि तरंगों हो या इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगें हों सबकुछ उसकी फ्रीक्वेंसी पर निर्भर करता है।

6. लेड मस्तिष्क नियंत्रण (LED Mind Control) :- विज्ञान के क्षेत्र में लेड की रौशनी से भी मस्तिष्क को पढ़ने व नियंत्रित करने के विषय पर भी रिसर्च हो रहा है। लेड की रौशनी की निश्चित वेवलेंग्थ (wavelength), कलर और टोन (tone) से कई तरह के जैविक व व्यवहार परिवर्तन होते हैं। इसी आधार पर मस्तिष्क पर भी रिसर्च किया जा रहा है। इससे उत्पन्न लक्षण व समस्याओं के बारे में फिलहाल कोई जानकारी नहीं है।

इस विषय ज्यादा जानकारी के लिए निम्नलिखित लिंक्स को क्लिक करें :-
1. A New Use for LEDs: Mind Control
2. How to Use Light to Control the Brain
3. Scientists Use Precise Flashes of Light to Implant False Memories in Fly Brains
4. Mind control with sound and light

7. वियर-एबल  गैजेट्स (Wearable Gadgets) :- आजकल बहुत सी स्मार्ट वियर-एबल गैजेट्स उपलब्ध होने लगी हैं। ये गैजेट्स रक्तचाप, दिल की धड़कन पर नजर रखने, दूरी, कदमों और कैलोरी को मापने जैसे बहुत से कार्यों में सक्षम होते हैं। मगर हैकर्स इन गैजेट्स को हैक करके लोगों के व्यक्तिगत एवं स्वास्थ्य डाटा को चुराते हैं।

इस बारे में ज्यादा जानकारी के लिए निम्नलिखित लिंक्स को क्लिक करें :-
1. Protecting against the misuse of data from wearables
2. 10 things you need to know about the security risks of wearables
3. How can wearables affect our lives?
4. Misuse Of Electronic Gadgets

डाटा का दुरुपयोग :- कोई भी व्यक्ति इस तरह के डाटा को क्यों चुराना चाहेगा? ऐसा लगता है कि बहुत ही बड़े स्तर पर शरीर के डाटा इकट्ठा किए जा रहे हैं। क्या आपको नहीं लगता कि इस डाटा पर रिसर्च करके शरीर को हैक करने के तरीके ईजाद किए जा सकते हैं अथवा हैकिंग की तकनीक को बेहतर किया जा सकता है?

8. चिकित्सा और हथियार :- चिकित्सा जान बचाने के लिए होती है जबकि हथियार जान लेने अथवा नुकसान पहुंचाने के लिए। मगर अब चिकित्सा में काम आ सकने वाले उपकरणों एवं तकनीक का उपयोग हथियार तथा मस्तिष्क और शरीर की हैकिंग के कार्य में होने लगा है।

दुरुपयोग :- शॉक वेव्स (उपरोक्त विषय की चिकित्सा में उपयोगी हो सकता है), साउंड बुलेट्स (ट्यूमर को नष्ट करने में उपयोगी हो सकता है), पराश्रव्य (चिकित्सा के क्षेत्र में पराश्रव्य के कई उपयोग हैं), डोप्पलर इफेक्ट (रक्त के बहाव को नापने में उपयोग होता है) आदि का दुरुपयोग मस्तिष्क और शरीर की हैकिंग के लिए हो रहा है।

मानवता के लिए गंभीर खतरा


वैसे तो शरीर के सभी अंग महत्वपूर्ण होते हैं मगर उनमें सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण स्थान मस्तिष्क का होता है। मस्तिष्क का मुख्य कार्य ज्ञान, बुद्धि, तर्क शक्ति, स्मरण, विचार निर्णय, शरीर, व्यक्तित्व आदि का नियंत्रण एवं नियमन करना होता है। इसी मस्तिष्क से हमारा वजूद है तथा इसी के कारण हम सब की सोच समझ, व्यक्तित्व तथा पहचान अलग -अलग  होती है। मस्तिष्क ही हमें पशुओं से अलग करता है।

अगर मस्तिष्क ही हैक हो जाए तो इसके कितने भयानक परिणाम हो सकते हैं, जरा इसकी कल्पना करके देखिए। न तो मानव जीवन का कोई महत्त्व रहेगा तथा न ही व्यक्तिगत आजादी के कोई मायने रहेंगे। न कोई निजता होगी और न ही कुछ गुप्त होगा फिर चाहे वे व्यक्तिगत हों, सामाजिक हो अथवा कारोबार व फाइनेंस से जुड़ी बातें। इतना ही नहीं, किसी भी देश की सुरक्षा, स्वतंत्रता एवं संप्रभुता तक खतरे में पड़ सकती है।

 मस्तिष्क हैक होने लगे तो दुनिया में हर जगह आतंक, असुरक्षा और अराजकता का माहौल होगा। ऐसी स्थिति में किस प्रकार के अपराध होंगे जरा सोच के देखिए। इंसानों के मस्तिष्क से उनके बैंक खातों के पासवर्ड चुराए जाएंगे, विचारों पर डाके डाले जाएंगे तथा किसी का भी ब्रेन वाश करना व सोच-समझ पर काबू करना मामूली बात होगी। ब्लैकमेल का काम जोरों पर होगा तथा किसी को भी विक्षिप्त बनाना या घोषित करना चुटकियों का काम होगा। लोगों को जोम्बी (Zombie) बनाकर किसी भी अपराध या आतंकवादी घटनाओं में इस्तेमाल किया जाएगा तथा मनचाहे झगड़े और दंगे-फसाद कराए जा सकेंगे। जमीन-जायदाद हड़पना बहुत आसान होगा।

कौन अपराध करा रहा है, कुछ पता ही नहीं चलेगा। ऐसे हालात में अदालतों में केस चलने का कोई मतलब ही नहीं रहेगा। सिर्फ कुछ ताकतें तय करेंगी कि किसे गुलाम बनाया जाए तथा किसे मनचाही क्षति पहुंचाई जाए। मानव जाति की हैसियत कीड़े-मकोड़ों की सी होगी, विरोध करने वालों को खत्म कर दिया जाएगा तथा सोच पर भी पहरे लगेंगे।

क्या निकट भविष्य में ऐसी स्थिति होगी कि आपके मस्तिष्क के विचारों पर हर वक्त निगरानी रखी जाएगी? वर्तमान में ही चीन में ये स्थिति आ गई है कि वहां कुछ फैक्टरियों (Factories) में कर्मचारियों को सिर पर खास तरह का हेलमेट पहनना पड़ता है ताकि इस बात पर नजर रखी जा सके कि वे काम के वक्त, अपने काम के अलावा, कुछ और तो नहीं सोच रहे।

इस बारे में ज्यादा जानकारी के लिए निम्नलिखित लिंक्स को क्लिक करें :-
1. 'Mind-reading’ tech being used to monitor Chinese workers' emotions
2. Helmets that measure your emotional state? China is on it
3. China Claims It's Scanning Workers' Brainwaves to Increase Efficiency and Profits

ऐसे में अगर मस्तिष्क के अलावा शरीर के अंगों की भी हैक होने लगे तो स्थिति हमारी सोच से भी ज्यादा भयावह होगी। कोई भी व्यक्ति सुरक्षित नहीं रहेगा। ऐसी स्थिति अघोषित तानाशाही की होगी (जिसके कि टारगेटेड इंडिविजुअल्स तथाकथित तौर पर गवाह हैं) अथवा घोषित तानाशाही होगी, ये तो समय ही बताएगा। अभी तो मस्तिष्क पर ये कहकर रिसर्च हो रहा है कि इससे चिकित्सा के क्षेत्र में बहुत फायदा होगा मगर ये समझने वाली बात है कि इस तकनीक का व्यापक स्तर पर दुरुपयोग होगा (या होना शुरू भी हो गया है)।

ऐसे में जरूरत इस बात की है कि इस विषय पर अभी से विश्व-मंच पर चर्चा शुरू की जाए तथा दुरुपयोग को रोकने के लिए कड़े कदम उठाए जाएं।

► समस्या का समाधान :- इंसानी शरीर की हैकिंग अगर पूरी तरह से संभव हो जाए तो ये बहुत भयानक समस्या बन सकती है। इस विषय पर निम्नलिखित कुछ समाधान हो सकते हैं :-

1. जागरुकता :- ये विषय दुनिया के हर इंसान से जुड़ी है, इसलिए अभी से इस विषय पर हर व्यक्ति को इस विषय में जागरुक होना चाहिए। ये बहुत ही कठिन कार्य है क्योंकि लोग अपनी निजता और अधिकारों को लेकर पूरी तरह से उदासीन हैं। मोबाइल में एप्प्स किस तरीके की जानकारी, डाटा और सेटिंग की आज्ञा मांगते हैं, इस बात को अधिकतर लोग गंभीरता से नहीं लेते हैं। इसके अलावा इंस्टाग्राम, फेसबुक, टिकटोक, व्हाट्सएप्प आदि सोशल एप्प्स (जिनमें से कुछ का मैंने भी उपयोग किया है) पर बिना सोचे-समझे अपनी दिनचर्या की सेल्फी एवं निजी जानकारियां शेयर करते हैं। यहां तक कि बच्चों को भी मोबाइल का लत लगाया जा रहा है तथा सोशल एप्प्स पर उनके अकाउंट खोले जाते हैं।

ऐसे में क्या लोगों के पास इतना समय है कि वे अपनी निजता, अधिकारों आदि के बारे में जागरुक हो सकें? क्या वे मस्तिष्क के विचारों को पढ़ने एवं नियंत्रण करने की आज्ञा सहज ही दे देंगे?

2. एकता :- लोगों में इतनी एकता और भाईचारा होनी चाहिए कि समाज का कोई भी व्यक्ति गैर कानूनी तरीकों से टारगेटेड इंडिविजुअल्स न बनने पाएं। साथ ही परिवारों में भी एकता होनी चाहिए। मगर क्या समाज में इतनी एकता होगी?

3. पासवर्ड की जरूरत न रहे :- यूट्यूब की किसी वीडियो में मैंने ऐसा सुना था कि 5G नेटवर्क आने पर बैंक, मेल आदि के लिए पासवर्ड जरूरी नहीं रहेगा। मोबाइल ही वेरिफिकेशन के लिए काफी रहेगा। साथ ही ये भी सुनने में आया था कि बैंक धीरे-धीरे ब्लॉक चैन टेक्नोलॉजी (Block Chain Technology) जिससे व्यक्ति की वेरिफिकेशन आसानी से हो सकती है। मगर ये बातें सही हैं या नहीं अथवा ऐसी कोई तकनीक भविष्य में आएगी या नहीं, ये तो आने वाला समय ही बताएगा। फिलहाल मेल में डबल वेरिफिकेशन (Double Verification) की सुविधा दी जाने लगी है। लोगों को इस वेरिफिकेशन का लाभ उठाना चाहिए।

साथ ही, बैंकों से भी ये मांग की जानी चाहिए कि बैंकों के ट्रांसेक्शन में भी डबल पासवर्ड वेरिफिकेशन शुरू होनी चाहिए। अर्थात सिर्फ ट्रांसेक्शन के समय ही नहीं बल्कि लॉग इन (Log In) के वक्त भी ओटीपी (OTP or One Time Password)  वेरिफिकेशन होना चाहिए।

4. मानव अधिकारों की सुरक्षा के लिए कानून बने :- हर देश के लोगों को सरकार से ये मांग करनी चाहिए कि मस्तिष्क के विचारों की रीडिंग, नियंत्रण अथवा सोच-समझ को प्रभावित करने तथा शरीर के अंगों की हैकिंग आदि को रोकने के लिए कानून बनाए जाएं, जिनका उल्लंघन करने वाले को बहुत कठोर दंड मिले। इस बात का भी ध्यान रखा जाए कि किसी को भी असीमित शक्ति न मिले।

मानव अधिकारों की सुरक्षा का विचार निम्नलिखित लेख से लिया गया है :-
1. New human rights to protect against 'mind hacking' and brain data theft proposed
2. Towards new human rights in the age of neuroscience and neurotechnology

5. सूचना का अधिकार :- हर देश के नागरिकों को ये मांग करनी चाहिए कि मस्तिष्क हैकिंग आदि के विषय में क्या-क्या रिसर्च चल रहा है, कौन-कौन सी उपलब्धि प्राप्त हो चुकी है तथा इनका किस कार्य के लिए कहां-कहां उपयोग होगा। वैसे भी लोगों के टैक्स के पैसों से ही विज्ञान के क्षेत्र में इस विषय पर रिसर्च हो रहा है तो लोगों का ये अधिकार होना चाहिए कि विज्ञान एवं टेक्नोलॉजी के क्षेत्र की हर जानकारी उन्हें मिले।

ये मांग भी होनी चाहिए कि लोगों को ऐसे उपकरण उपलब्ध कराए जाएं जिससे वे अपनी सुरक्षा कर सकें। ऐसे उपकरणों से ये पता चल सके कि गैर क़ानूनी ढंग से मस्तिष्क के विचारों को पढ़ने या नियंत्रित करने आदि की कोई कोशिश तो नहीं कर रहा है। साथ ही, इस तरह की टेक्नोलॉजी का दुरुपयोग के बारे में भी पूरी जानकारी मिले।

धन्यवाद।  

2 टिप्‍पणियां:

  1. Namasthe, I would like to know more on your article. About these remote tortures using invisible energies. Pls connect at support@covertEnergyTorture.org or visit www.CovertEnergyTorture.org. We are a Bangalore based NGO.

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  2. Namaste, Thanks for showing your interest on my article. My blog "https://maulik-rachna.blogspot.com/" tries to give information based on fact, logic or evidence. Good to know that your NGO is also trying to spread awareness regarding misuse of energies.

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